राजपूताना राइफल्स की ये बात जानकर आप रह जाएंगे हैरान
सबसे पुरानी और सम्मानित रेजिमेंट
1. राजपूताना राइफल्स इंडियन आर्मी की सबसे
पुरानी और सम्मानित राइफल रेजिमेंट है, इसे 1921 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी के तौरपर विकसित किया गया था। साल 1945 से पहले इसे 6 राजपूताना राइफल्स के तौर पर जाना
जाता था, क्योंकि इसे तब की ब्रिटिश इंडियन आर्मी के 6 रेजिमेंट्स के विलय के बाद
बनाया गया था। राजपूताना राइफल्स को मुख्य रूप से पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए
जाना जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संरक्षक सेना का भी हिस्सा रही
2. 1953-1954 में राजपूताना
राइफल्स कोरिया में चल रहे संयुक्त राष्ट्र संरक्षक सेना का हिस्सा थी। साथ ही वे1962 में कौंगो में चले संयुक्त राष्ट्र मिशन का भी हिस्सा थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने माना लोहा
3. राजपूताना राइफल्स की स्थापना 1775 में की गई
थी, जब तात्कालिक ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजपूत लड़ाकों की क्षमता को देखते हुएउन्हें अपने मिशन में भर्ती कर लिया।
पांच बार रि डिजाइन हुई थी यूनिट
4. उस वक्त बनी स्थानीय यूनिट को 5वीं बटालियन
बंबई सिपाही का नाम दिया गया था। इसे 1778 में 9वीं बटालियन बंबई सिपाही के तौर पररि-डिजाइन किया गया था। रेजिमेंट को 1921 में फाइनल शेप देने से पहले 5 बार
रि-डिजाइन किया गया।
करगिल युद्ध में मिला था सम्मान पत्र
5. राजपूताना राइफल्स करगिल में लड़ने वाली
7 आर्मी यूनिट्स में से पहली यूनिट थी, जिसे 1999 में हुए कारगिल युद्ध में बहादुरीके लिए आधिकारिक तौर पर सम्मान पत्र से नवाजा गया था। राजपूताना राइफल्स का आदर्श
और सिद्धांत वाक्य वीर भोग्या वसुंधरा है, जिसका अर्थ है कि केवल वीर और शक्तिशाली
लोग ही इस धरती का उपभोग कर सकते हैं।
"राजा रामचन्द्र की जय" है युद्धघोष
6. राजपूताना राइफल्स का युद्धघोष है, राजा
रामचन्द्र की जय। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राजपूताना राइफल्स के लगभग30,000 सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी।
कटार और बिगुल है प्रतीक चिन्ह
7. मध्यकालीन राजपूतों का हथियार कटार और बिगुल
राजपूत रेजिमेंट का प्रतीक चिन्ह है। राजपूत रेजिमेंट और राजपूताना राइफल्स दोअलग-अलग आर्मी यूनिट हैं।
दिल्ली में बना है म्यूजियम
8. दिल्ली में स्थित राजपूताना म्यूजियम राजपूताना
राइफल्स के समृद्ध इतिहास की बेहतरीन झलक है। यह पूरे भारत के बेहतरीन सेनाम्यूजियमों में से एक है। 6जी बटालियन राजपूताना राइफल्स के कम्पनी हवलदार मेजर
पीरू सिंह शेखावत को 1948 में हुए भारत-पाक युद्ध के बाद, मरणोपरांत सेना में अदम्य
साहस के लिए दिए जाने वाले तमगे परम वीर चक्र से नवाजा गया था।